Wednesday 26 August 2015

नाम मात्र की कविता

सुनो मैं कुछ कहना चाहता हूँ!
कुछ अव्यक्त सी बातें हैं....
कुछ बिन सोई रातें हैं....
कुछ सीने में छुपे हुए राज हैं...
कुछ मेरे अनछुए अंदाज़ हैं....
सुनो मैं कुछ कहना चाहता हूँ!
मैं अपने ही ख्वाबों में रहना चाहताहूँ!
मैं कितना ही फिक्रमंद हो जाऊं
मैं भीड़ चीर, आज़ाद हो जाऊं,
मैं कितना हि चिल्ला ना लूँ....
मेरी आवाज़ मेरे सीने में दफ़न रह जाती है,
फिर एक कशक, एक टीस और जवां हो जाती है...
उस दर्द को मैं ढोता रहा हूँ अब तक,
जाने-अनजाने मेरे ह्रदय पटल पर
होती रहती है वो आह भरी दस्तक
मायूस-अनजान सा मेरा रस्ता फिर रुक जाता हैं
मेरा जिंदगी में आगे बढ़ा पांव, कुछ इंच पीछे
खिसक जाता है...बेबुझ सा मेरा दिल दहल सा जाता है
मैंने पहले ही कहा था....कि
मैं कुछ कहना चाहता हूँ!
कुछ अव्यक्त सी बातें हैं....
कुछ बिन सोई रातें हैं....
ये सब तो शब्द मात्र हैं,
मेरी वाणी तो मौन हैं
यही मेरी समस्या हैं कि मुझे समझता कौन है?
मेरे शब्दों में मेरे भाव खो जाते हैं...
मेरी व्यक्त करने की इच्छा अधूरी रह जाती है
और पीछे छूट जाती है नाम मात्र की कविता.....
और पीछे छूट जाती है नाम मात्र की कविता.....

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