Friday 29 April 2016

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत रे

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत रे
गा ले उसकी महिमा प्यारे जो तेरा है मीत रे!
समय बे समय साथी तेरा एकरस एकसार है
पा ले उसको खुद में अपने जो तेरा है प्यार रे

कह दे उसको मन की अपनी बात सारी प्यारी-प्यारी
वही है तेरी मंजिल राहें, आशिकी दुनियादारी
कर दे सबकुछ अर्पण उसको जो तेरे है पास रे
मत छुपा कुछ उससे बंधू, वो तेरा है खास रे
अपनी धुन में एक हो जा, छेड़ प्यार का संगीत रे
नहीं तुझसे वो खफा है प्यारे, जो तेरा है मीत रे
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत रे
गा ले उसकी महिमा प्यारे जो तेरा है मीत रे!

भक्ति से तू प्रेम कर ले, बिन प्रेम कुछ भी मांग ना
जो भी चाहे सब मिलेगा, इक छलांग तो लांघ ना
पार तेरे वह मिलेगा, जिसकी तुझे है तलाश रे
जा के उसकी छाँव में बैठ मत हो तू निराश रे
बिछड़ बिछड़ खूब है रोया पर मिलना उसकी रीत रे
डूब जा उस एकरस में जो तेरा है मीत रे
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत रे

गा ले उसकी महिमा प्यारे जो तेरा है मीत रे!

आत्म प्रेरणा होने दे

अंतर्वीणा बजने दे, आत्म प्रेरणा होने दे
तरु अच्छाई का लगने को बीज स्वयं को बोने दे
अंतर्वीणा बजने दे, आत्म प्रेरणा होने दे!

उठ जाग भाग प्रातः-काल हुआ
रवि नील गगन में लाल हुआ
अब तू भी चरण बढ़ा अपने...
देख क्या वसुधा का हाल हुआ
अंतर्द्वंद्व निकलने दे, आलस्य पड़ा है सोने दे
तरु अच्छाई का लगने को बीज स्वयं को बोने दे.!

अब रुक मत, तू भर उड़ान यहाँ से
एक छलांग लगा आसमान से
पथिक अनंत का है तू साथी
कर संकल्प दृढ लग जी जान से
अंतर्छंद निस्सरने दे, शुभ संकल्प संजोने दे
तरु अच्छाई का लगने को बीज स्वयं को बोने दे

शुभ अभ्यासों के पंखों को और गति दे ज्ञान दे
अनुजों पर तू प्यार उड़ेल और बड़ों को सम्मान दे
चल उड़ जा पंछी दूर गगन में , प्रेम मगन में
सुर-लय बेमिसाल अब तान दे
अंतर्नाद उभरने दे, शोर भीतर का खोने दे
तरु अच्छाई का लगने को बीज स्वयं को बोने दे

अंतर्वीणा बजने दे, आत्म प्रेरणा होने दे

तरु अच्छाई का लगने को बीज स्वयं को बोने दे

मैं पागल नहीं मैं जागरूक हूँ

मैं पागल नहीं मैं जागरूक हूँ
इस माती का सच्चा युवक हूँ ,
योगयुक्त महामानव हूँ
मैं महापुरुषों का प्रतिपूरक हूँ

प्राण-फूंक आज़ाद प्रतिमा में, एक जोश “नवीन” जगाना है
योगमय कर समग्र विश्व को, मानवता का पाठ पढ़ाना है
प्रचंड पुरुषार्थ से लबालब,
मैं राष्ट्रभक्ति में भावुक हूँ
मैं पागल नहीं मैं जागरूक हूँ

स्वाभिमान का शंखनाद हूँ
मैं भगतसिंह मैं आज़ाद हूँ
मैं शहीदों का जोश अमर हूँ
मैं राष्ट्रगोष्ठी का पावन संवाद हूँ
मैं अदम्य साहसी, वज्र सा कठोर
पर भीतर से नाजुक हूँ

मैं पागल नहीं मैं जागरूक हूँ