Wednesday 12 August 2015

देख आगे तेरे अनंत आकाश हैं,

एक मन!!
तू पार चला जा,
देख आगे तेरे अनंत आकाश हैं,
तोड़ दाल बंदिशों को
छोड़ डाल रंजिशों को, 
तू मत पड़ संसार में, यह केवल मोहपाश हैं,
तू पार चला जा,
देख आगे तेरे अनंत आकाश हैं,
तू लम्बी उड़ान भर,
मत उलझ, तू तान भर,
तू बढ़ता चल राह में, तुझे न अवकाश हैं,
तू पार चला जा,
देख आगे तेरे अनंत आकाश हैं,
छील डाल अपने मुखोटों को,
दर्द को अपने, चोटों को,
देख तू अब मुहं न मोड़, बस यही एक आस है,
तू पार चला जा,
देख आगे तेरे अनंत आकाश हैं,
एक और मन....
देख तू अब मान भी जा, आ संसार में लौट आ,
सब तो तेरे पास हैं यहाँ, अब तो तू लौट आ,
मत छोड़ तो ईश गान, बस राह तू ले बदल,
जनक विदेह के रूप में, अब तो तू लौट आ,
देख तू अब मान भी जा.....
बन प्रेममय आदर्श तू, गृहस्थ धर्म का सिरमौर तू
क्यों हैं पगले भागता क्यू ढूंढ़ता हैं कहीं ठौर तू,
जीतनी हैं तुझे गर दुनिया, नजदीक से पकड़ इसे,
मोक्ष पाले राम जैसे, भगवान मानती दुनिया जिसे,
विनय तुझको बार बार, इस संग्राम में लौट आ
देख तू अब मान भी जा, आ संसार में लौट आ...
ऐसे व्यथा एक जान की, चिंता भी अपने आन की,
ताजू निज संकल्प अपना, ये बात हैं अपमान की,
हां ये कैसे घडी हैं आई,
किसको बोलूं ये पीर पराई!

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