Monday 13 November 2017

कर्म_कारक 【#Objective_Case】

#कर्म_कारक 【#Objective_Case
१.सूत्र:- #कर्तुरीप्सिततमम्_कर्मः
व्याख्या:- कर्ता की अत्यंत इच्छा जिस काम को करने में हो उसे कर्म कारक कहते हैं।
या, क्रिया का फल जिस पर पड़े, उसे कर्म कारक कहते हैं।
कर्म कारक का चिह्न "o, को" है।
यथा :- रमेश फल खाता है । रमेशः #फलम् खादति।
मोहन दूध पिता है । मोहनः #दुग्धं पिबति।
यहाँ फलम् और दुग्धं कर्म कारक है क्योंकि फल भी इसीपर पर रहा है और कर्ता की भी अत्यन्त इच्छा भी इसी काम को करने में है।
२.सूत्र:- #कर्मणि_द्वितीया
व्याख्या :- कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है।
यथा:- गीता चन्द्रमा को देखती है। गीता #चंद्रम् पश्यति।
मदन चिट्ठी लिखता था । मदनः #पत्रं लिखति।
यहाँ चंद्रम् और पत्रं में द्वितीया विभक्ति है,क्योंकि ये दोनों कर्म कारक हैं।
३.सूत्र:-#क्रियाविशेषणे_द्वितीया
व्याख्या:- क्रिया की विशेषता बताने वाले अर्थात् क्रियाविशेषण (Adverb) में द्वितिया विभक्ति होती है।
【क्रियाविशेषण- तीव्रम् , मन्दम् ,मधुरं आदि।】
यथा:- (क) बादल धीरे-धीरे गरजते है। मेघा: मन्दम्-मन्दम् गर्जन्ति। (ख) प्रकाश मधुर गाता है। प्रकाशः #मधुरं गायति।(ग)वह जल्दी जाता है। सः #शीघ्रं गच्छति।आदि
४.सूत्र:-#अभितः_परितः_सर्वतः_समया_निकषा_प्रति_संयोगेऽपि_द्वितिया
व्याख्या :-उभयतः,अभितः(दोनों ओर), परितः (चारों ओर), सर्वतः (सभी ओर), समया( समीप), निकषा (निकट), प्रति (की ओर) के योग में द्वितिया विभक्ति होती है।
यथा:-(क) गाँव के दोनों ओर पर्वत हैं। #ग्रामं अभितः पर्वताः सन्ति ।(ख) विद्यालय के चारों ओर नदी है। #विद्यालयम् परितः नदी अस्ति। (ग) घर के सब ओर वृक्ष हैं। #गृहम् सर्वतः वृक्षाः सन्ति। (घ) तुम्हारे घर के समीप मंदिर है। तव #गृहम् समया मन्दिरं अस्ति। (ङ) मंदिर की ओर चलो। #मन्दिरं प्रति गच्छ। आदि
५.सूत्र:- #कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे_द्वितिया
व्याख्या :- कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में यदि क्रिया का अतिशय लगाव या व्याप्ति हो तो द्वितिया विभक्ति होती है।
यथा :- कोस भर नदी टेढ़ी है। #क्रोशम् कुटिला नदी ।
मैं महीने भर व्याकरण पढ़ा। अहम् #मासं व्याकरणं अपठम्।
६. सूत्र:- #विना_योगे_द्वितिया ।
व्याख्या:- "विना" के योग में द्वितिया विभक्ति होती है।
यथा :-(क) परिश्रम के बिना विद्या नहीं होती ।
#परिश्रमम् विना विद्या न भवति ।
(ख) धन के बिना लाभ नहीं होता।
#धनम् विना लाभं न भवति । आदि।
तरुणेश कुमार झा मैथिली

लकार

#लकार_गण_धातुप्रकार_विभक्ति 
(1.) #संस्कृत_भाषा_में_तीन_लिंगः---(क) पुल्लिंग, (ख) स्त्रीलिंग, (ग) नपुंसकलिंग।
(2.)#तीन_वचनः---*
(क) एकवचन, (ख) द्विवचन, (ग) बहुवचन।
(3.) #तीन_पुरुषः--*(क) प्रथमपुरुष, (ख) मध्यमपुरुष, (ग) उत्तमपुरुष।
(4.)#छः_कारक_विभक्ति_और_चिह्नसहितः--
(क) कर्ताकारकः--ने (प्रथमा),
(ख) कर्मकारकः--को, (द्वितीया)
(ग) करणकारकः---से द्वारा, (तृतीया)
(घ) सम्प्रदानकारकः--के लिए, (चतुर्थी)
(ङ) अपादानकारकः---से अलग, (पञ्चमी),
(च) सम्बन्धः----का,के,की, (षष्ठी),
(छ) अधिकरणकारकः---में, पर, (सप्तमी),
(ज) सम्बोधनः--हे, हो ,अरे, (प्रथमा),
★(विशेषः----सम्बन्ध और सम्बोधन को कारक नहीं माना जाता।)
इस प्रकार कुल विभक्तियाँ सात हैं।
(5.)#लकारः---संस्कृत में कुल 10 लकार होते हैं। लिंग के दो भेद हैं---आशीर्लिंग और विधिलिंग। लेट् लकार का प्रयोग केवल वेद में होता है। इस प्रकार लोक में 10 लकार ही रहते हैं, जो इस प्रकार हैः--
(क) लट्,
(ख) लिट्,
(ग) लुट्,
(घ) लृट्,
(ङ) लेट्,
(च) लोट्,
(छ) लङ्,
(ज) लिंगः---आशीर्लिंग और विधिलिंग,
(झ) लुङ्,
(ञ) लृङ्
(6.)#गणः---10 गण होते है। इसके अतिरिक्त एक कण्ड्वादिगण भी है। जो इस प्रकार हैः--
(क) भ्वादिगण,
(ख) अदादिगण,
(ग) जुहोत्यादिगण,
(घ) दिवादिगण,
(ङ) स्वादिगण,
(च) तुदादिगण,
(छ) रुधादिगण,
(ज) तनादिगण,
(झ) क्रयादिगण,
(ञ) चुरादिगण,
(ट) कण्ड्वादिगण (अतिरिक्त)
(7.)#धातुएँ_दो_प्रकार_की_होती_हैं----(क) आत्मनेपदी (ख) परस्मैपदी। कुछ धातुएँ उभयपदी भी होती हैं।

कर्ता_कारक_【#Nominative_Case】

#कर्ता_कारक_#Nominative_Case
१.सूत्र:- #क्रियासम्पादकः_कर्ता
व्याख्या:- क्रिया का सम्पादन करने वाले को कर्ता कारक कहते हैं। कर्ता कारक का चिह्न "0,ने " है।
यथा:- #वह किताब पढता है । #सः पुस्तकम् पठति।
#राधा गीत गाती है । #राधा गीतं गायति।
यहाँ #सः और #राधा कर्ता कारक है ।
२.सूत्र:- #कर्तरि_प्रथमा ।
व्याख्या:- कर्ता कारक में प्रथमा विभक्ति होती है।
यथा:- #राम स्कूल जाता है।#रामः विद्यालयम् गच्छति।
यहाँ रामः में प्रथमा विभक्ति है ,क्योंकि #राम कर्ता कारक है ।
३.सूत्र:- #प्रातिपदिकार्थमात्रे_प्रथमा
व्याख्या:- किसी भी शब्द का अर्थ-मात्र प्रकट करने के लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
यथा :- #जनः (आदमी), #लोकः (संसार), #फलम् (फल), #काकः (कौआ) आदि।
४.सूत्र :- #उक्ते_कर्तरि_प्रथमा ।
व्याख्या :- कर्तृवाच्य (Active Voice)में जंहाँ कर्ता पद "कहा गया" रहता है वहाँ उसमे प्रथमा विभक्ति होती है।
यथा:- #राम घर जाता है । #रामः गृहम् गच्छति।
५.सूत्र:- #सम्बोधने_च ।
व्याख्या :- सम्बोधन में भी प्रथमा विभक्ति होती है।
यथा :- #हे_राम ! यहाँ आओ। #हे_राम! अत्र आगच्छ ।
६.सूत्र:-#अव्यययोगे_प्रथमा ।
व्याख्या :- अव्यय के योग में प्रथमा विभक्ति होती है ।
यथा :- #मोहन कहाँ है? #मोहनः कुत्र अस्ति?
यहाँ मोहन कर्ता नहीं है फिर भी कुत्र अव्यय होने के कारण मोहन में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग हुआ ।
७.सूत्र:-#उक्ते_कर्मणि_प्रथमा
व्याख्या:- कर्मवाच्य (Passive Voice) में जहाँ कर्ता पद "कहा गया" रहता है , वहाँ उसमे प्रथमा विभक्ति होती है।
यथा :- (क)राम के द्वारा घर जाया जाता है। रामेण #गृहम् गम्यते।(ख)तुझसे साधु की सेवा की जाती है। त्वया #साधुः सेव्यते। आदि।
तरुणेश कुमार झा मैथिली

संस्कृत-भाषा सरला भाषा

🙏#बुद्धिजीवियों_की_सेवा_में : 🙏
😇अंग्रेजी में #A_QUICK_BROWN_FOX_JUMPS_OVER_THE_LAZY_DOG'एक प्रसिद्ध वाक्य है। अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर उसमें समाहित हैं। किन्तु कुछ कमियाँ भी हैं :-
1) अंग्रेजी अक्षर 26 हैं और यहां जबरन 33 अक्षरों का उपयोग करना पड़ा है। चार O हैं और A,E,U तथा R दो-दो हैं।
2) अक्षरों का ABCD... यह स्थापित क्रम नहीं दिख रहा। सब अस्तव्यस्त है। 
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#अब_संस्कृत_में_चमत्कार_देखिए.!
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#:#खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:।
#तथोदधीन_पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां_सह।।
(अर्थात्)- पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का , दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन? राजा मय कि जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।
आप देख सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस पद्य में आ जाते हैं। इतना ही नहीं, उनका क्रम भी यथायोग्य है।
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#एक_हीअक्षरों_का_अद्भूत_अर्थ_विस्तार...
माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल "भ" और "र " दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है-
#भूरिभिर्भारिभिर्भीभीराभूभारैरभिरेभिरे
#भेरीरेभिभिरभ्राभैरूभीरूभिरिभैरिभा:।।
अर्थात् धरा को भी वजन लगे ऐसे वजनदार, वाद्य यंत्र जैसी आवाज निकालने वाले और मेघ जैसे काले निडर हाथी ने अपने दुश्मन हाथी पर हमला किया।
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#किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल "न" व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य प्रयोग करके #भारवि_नामक_महाकवि ने थोडे में बहुत कहा है:-
#न_नोननुन्नो_नुन्नोनो_नाना_नाना_नना_ननु
#नुन्नोSनुन्नो_ननुन्नेनो_नानेना_नन्नुनन्नुनुत्।।
अर्थात् जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है।।
।। #वंदेसंस्कृतम् ।।