Sunday 1 July 2012

स्पेक्ट्रम घोटाला!

                                         
2-G स्पेक्ट्रम  -2-G स्पेक्ट्रम
कैसे फूट पड़ा ये बम! किसने फोड़ दिया ये बम ?!!1!!
2-G स्पेक्ट्रम  -2-G स्पेक्ट्रम

यदि कुछ खता पीता कैग!
खुले राज न, हो खली बैग !
 भरता हि जाता भरता हि जाता
जितना खाते फिर भर जाता
बरसे नोट झमाझम- झम
2-G स्पेक्ट्रम  -2-G स्पेक्ट्रम!!2!!

संविधान की शपथें खाएं,
लोकतंत्र की रस्म चबाएं!
वित्त-मूर्धन्य प्रधान मंत्री,
जुडी कहें न इनसे जंत्री!
इन्हें आये न कुछ भी शरम
2-G स्पेक्ट्रम  -2-G स्पेक्ट्रम!!3!!

धन्य! धन्य! तुम को भी कैग!
खली करना इनके बैग !
इससे पहले लो न दम
2-G स्पेक्ट्रम  -2-G स्पेक्ट्रम

यदि कुछ उपाय कलर लेता राजा 
आज न बजता उसका बाजा,
घूम रहा होता ब़े-गम 
2-G स्पेक्ट्रम  -2-G स्पेक्ट्रम!!5!!

कईयों  की चल रही यु गाड़ी
बड़े खिलाडी ज्यू कलमाड़ी
बजा न अब तक ढोल धमाधम
2-G स्पेक्ट्रम  -2-G स्पेक्ट्रम!!6!!

लोकतंत्र  काजल कोठरिया-:
बन गई थी "छोटी सी पुडिया"
जो भी जाये बच नहीं पाए
अपने सर आँखों में बिठाये
करे उसी का ये Welcome!
2-G स्पेक्ट्रम  -2-G स्पेक्ट्रम

काजल की कोठरिया तोड़ो,
शिव शम्भो गिरि-कंदर छोड़ो
"शैलज" बोलो शिव बम बम बम !
2-G स्पेक्ट्रम  -2-G स्पेक्ट्रम

Sunday 22 April 2012

जब पेड़ लगायेगा इंसान

जब पेड़ लगायेगा इंसान
तभी बनेगा देश महान
होगी वर्षा अन्न उगेगा, 
देश का खुश हो जाये किसान
कल-कल, छल- छल, बहती नदिया 
गन्ना सींचे, सींचे धान
खेत भरे गेंहू सरसों के,
भर जायेंगे घर खलिहान।।

पूरी खीर पकोड़े खावे,
बच्चे बूढ़े  सभी जवान 
लुका छीपी खेलेंगी चिड़िया,
कोयल छेड़े मीठी तान
बिजली चमके, बदल कड़के 
नाचते मोर की कैसी शान!
बच्चे खेलें घर आँगन में,
लिखे पढेंगे होगा ज्ञान।।
मेहनत करके निडर बनें, जब
तभी बनेगा देश महान
 मुक्त प्रदुषण विश्व बने तब,
जब पेड़ लगयेगा इंसान
"शैलज" आने वाली पीढ़ी,
देखो नन्ही मुन्नी जान
अगर प्रदुषण नहीं रुका तो,
सर पर चढ़ बोले शैतान 

जब पेड़ लगायेगा इंसान
तभी बनेगा देश महान.........................


                                                                ___________._______________

कुमाउनी साहित्य रचना


                                                               भारतीय शास्त्रीय संगीत 






स्थाई:
मैं व्याकरण का राग में छौं,
दिन-रात भागम भाग में छौं
अंतरा:
वर वर्णिनी मिल गेछ में कनि 
अब लग्न सुझाने आस में छौं
चिर जोभना, यो बान सुन्दर
मन में सबों कें छा बसी हो!
मैं न्यूत दयुलो, आप सबों कन,
"शैलज" अला! विश्वास में छौं.।।

दोहा:
सम्पूरण सुर लागही, ग-ध  कोमल जंह लाग।
"शैलज" शैल सुधा सुखद, स-प वादी धरि राग।।

आरोह:- सा रे ग म प ध नि सां। सां नि ध प म ग रे सा 
पकड़:- सा नि. सा, रे प म प ग रे सा 

राग: रसूल (तीन ताल) 
राग: परिचय-
ग म - म ग औडव भेद यह ध रि वादी संवाद 
"शैलज" राग- रसूल में, मृदु आरोह निषाद।

आरोहादी- सा रे प ध नि सां। सां नि ध प रे सा
पकड़:- सा, रे प, ध नि ध, प रे सा 

पद रचना:-
स्थाई:- तू ही सब में एक राम हैं, तेरे नाम भले ही न्यारे।

अंतरा: 
तू हि मुहम्मद , तू ही ईशा, तू ही राम सकल जगदीशा
तू हि गुरु, तू हि गौड पिया रे ।।  तेरे नाम भले ही न्यारे 
"शैलज" तेरे भेद निराले, काले गोरे हम सब नाले ।
जाने वो तेरे प्यारे, तेरे नाम भले ही न्यारे 

पहले मुर्गी या फिर अंडा



                                                        पहले मुर्गी या फिर अंडा







बालक: माँ! पहले मुर्गी या अंडा?
दुनिया में आने से पहले 
किसने गाड़ा झंडा ?।।१।।
माँ: बेटा टेढ़ा प्रश्न तुम्हारा,
कैसे तुम्हे बताऊँ,
जीव अंश इश्वर के सारे 
ये कैसे समझाऊं ।।२।।
टेढ़े मेंडे प्रश्न न पूछ तू ,
जा सोजा! करले निन्नी 
ऐसे प्रश्नों ने कर डाली  
बड़ो कि चक्कर घिन्नी ।।३।।
मुर्गी मरती अंडा बचता
अंडे से फिर मुर्गी ,
जीव कभी मरे नहीं मरता,
देह छोड़ हो जाती स्वर्गी ।।४।।
जैसे बट के  बीज समाये,
पेड़ हुआ जो भारी  
पेड़ परागढ़ करते वैसे                               
जैसे नर और नारी ।।५।।
मुर्गी अंडा बीज पौध का 
चोली दामन का नाता 
जीव उन्ही के बीच भटकता 
रहता आता जाता ।।६।।
निर्मल है आकाश के जैसा,
पानी हवा न आग जलाती 
इनके संग सदा रहता वह,
जीवन पर धरती मिल जाती ।।७।।
इश्वर का यह खेल निराला,
बेटा! जीवही कर्म नचावे 
जैसे जैसे कर्म करे वह
वैसे देहि पावे  ।।८।।
मुर्गी अंडा गाय भैंश में,
जीव देह से न्यारा 
कर्म भूमि में कर्म फलो के,
कारन जावे मारा ।।९।।
जीव देह का, देह कर्म का 
चोली दामन का नाता 
जीव उन्ही के बीच भटकता 
रहता आता जाता ।।१०।।
कर्मो के फल, जो तन मिलता 
विवश उसी में घुस जाता 
पेड़- पौंध क्या, पशु क्या पंछी 
क्या तू! क्या मैं, वह बन जाता।।११।।
फल -फूलों में, घास-पात में
अन्न-शाक, जल में मिल जाता
खाता जो-जो देहि उसको,
जान न कोई पाता।।१२।।
जन्मा मारा तो जीव देह से,
जीवन जाये मारा
देहि सदा सदा से हारी 
जीव कभी नहीं हारा ।।१३।।
धान कटे तो बीज बचाए 
बीज समय पा उग जाये 
वैसे जीव देह त्याग कर 
ह बीज रूप हो जाये ।।१४।।
बीज संभाले रखती धरती ,
 प्रकृति जगत कि महतारी 
मुर्गी देह बीज है अंडा, 
 ईश्वर के महिमा न्यारी ।।१५।।
जीव जगत का बड़ा अनोखा 
बेटा! ये विज्ञानी फंडा
सिर पर बैठा काल जीव के- 
दिन, गिन- गिन मारे डंडा
अब तू हि बता दे लाल! हुआ क्या ?
पहले मुर्गी या अंडा ।।१६।।
बालकोवाच:-
कुछ-कुछ समझ गया होइन अब मैं ,
जीव देह के भेदही माता!
सत कर्मो से हि मिलता है
अच्छे मात-पिता का नाता।।१७।।

मैं भी अच्छे काम करूँगा
भले -बुरे का, ज्ञान करूँगा!
मात-पिता-गुरु, सुहृद जनों का
"शैलज" आदर  मान करूँगा।।१८।।

Wednesday 18 April 2012

मेरे भगवान

मेरे भगवान

हर गुणों से भरपूर, गुणों की खान है वो,
मेरी नजर में आदमी महान है वो-
साहित्य प्रेम, समाज सेवा और सहजता,
मानवता, समानता की पहचान है वो-
लोग कहते है भगवान न दिखा, मेरे लिए भगवान है वो!!१!!

बचपन से लेकर आजतक, उनकी छाया में पला
जिंदगी के टेढ़े-मेढे राहों में, पकड़ उंगुली उनकी चला,
है गर्व मुझे कहते हुए, मेरे लिए सारा जहान है वो-
लोग कहते है भगवान न दिखा, मेरे लिए भगवान है वो!!२!!

ना सोचा कभी बुरा, ना ही किया बुरा कभी किसी का
हाथ उठे सेवा के लिए, जब दर्द महसूस किया किसी का,
दुश्मन को भी गले लगाया, भूल सारे शिकवे गीले,
मानवता के है जो पुजारी, क्यों दुःख ना दूर करें किसी का
कहना है सभी का की, पुरे बजीना की शान है वो- 
लोग कहते है भगवान न दिखा, मेरे लिए भगवान है वो!!३!!

तू दिया हैं,मैं हूँ बाती

लिख प्रेम भरी दो पाती,
तू दिया हैं,मैं हूँ बाती
तेल संग हम लौ जलायें,
ये जिंदगी तो है आती-जाती.....
लिख प्रेम भरी दो पाती,
तू दिया हैं,मैं हूँ बाती..........................!!१!!
प्रेम की भाषा, प्रेम ही अक्षर
प्रेम ही तो है ये ईश्वर
है शाश्वत प्रेम जगत में
बाकी सब कुछ तो हैं नश्वर
जब बूँद सागर में समातीं
लिख प्रेम भरी दो पाती,
तू दिया हैं,मैं हूँ बाती..........................!!२!!
आ खुद के भीतर सूर्य उगायें
घोर ताम का अन्धकार मिटायें
बन प्रेम सुवास चहुँ दिशा में
आ वन-उपवन सब महकाएं
जब प्रेम बारिश खुद को नहलाती
लिख प्रेम भरी दो पाती,
तू दिया हैं,मैं हूँ बाती..........................!!३!!---आज प्रभात का लेखन (स्थान-राजापुरी

"Pitashri"

        Bishan Datt Joshi,'Shailaj'-a Kumaoni Poet from Dwarahat







I had an occasion 2 meet Bishan Datt Joshi‘Shailaj’ in a Kavi Sammlen hosted by the Press Club in Barola Cottage, Ranikhet.  He was accompanied by a dozen Poets who recited their poems. But Bishan Datt Joshi was unparallel. He started with Saraswati Bandana in Kumaoni, which I am appending at the penultimate paragraph. Bishan Datt Joshi comes from a remote village. He comes from village Bajina near Era Barkham.  Bajina is some 32 Kms. from Ranikhet. One has to travel to Barkham on Ranikhet Jalali Masi route. From Barakham one has walk on foot for 3 Kms. 

Born in 1941, Joshi is Sahityalankar, Sahitya Ratna and Ayurveda Ratna. He is devoted to the cause of Kumaoni. He has to his credit a number of Kumaoni poems.  He has written Balkand and Sunderkand in Kumaoni, which was published in 1987.  He has also written Naithna Chalisa in Kumaoni eulogizing Naithana Devi. He has also written Poems on Dunagiri Maa. He said that he is working on Kumaon Dictionary.  He gave me a book-let of poems on Kumaoni Holi and Sri Girija Vishanti Kavya. 




Papa in News
सरस्वती वंदना

मति दे ! इजु शारद मति दे
        इज बौज्यू गुरु की करू सेवा                                                        
        जन्म दिनेर ज्ञान दिनी देबा 
चकबकान मति  थिर कर दे!
मति दे, इजु शारद मति दे
        विद्यावल कवि हमर न थाको
        इजु तुमरै बल हो हिय बांको
झलमल खुट जोत की रति दे
मति दे ! इजु शारद मति दे
        गटू करुँ ना चुगुली कैकी
        दया धरून सब जीवाम एकी
दान धरम मति सम्पति दे
 मति दे ! इजु शारद मति दे

 His recitation of Saraswati Vandana was appreciated by all. We wish all success to BD Joshi in his efforts to serve the cause of Kumaoni.-D.N. Barola






माँ

माँ


                                                                                                                                     
    










बचपन की शरारते और फिर माँ का बचाव,                                                         
यही तो रूप है माँ की ममता का
चोरी छिपे चाय का प्याला और ढेर सारा गुड
सदा याद दिलाता है माँ की ममता का!!१!!
                                   
बच्चे खाए, बच्चे पहने, यही सब वो सोचे वो,
पेट काट के खुद का अपना, भूखे पेट जब सोये वो,
तब न समझे माँ मोल तेरी ममता का
बचपन की शरारते और फिर माँ का बचाव
यही तो रूप है माँ की ममता का........

बच्चे पढ़ें, बच्चे बढ़ें, सपना यही था आँखों में,
अनवरत काम करें दिन भर, फिर फिर भी चैन न मिले रातों में,
कर्ज चूका न पाएंगे माँ तेरी ममता का
बचपन की शरारते और फिर माँ का बचाव
यही तो रूप है माँ की ममता का........

बीमार शरीर लेकिन इरादे कमजोर न पड़े
अपने बच्चों की खातिर दिन रात लड़े
पापा की बनके शक्ति संचार करें
गुस्से में भी प्यार परिवार को अपार करें
समझ ना पाएं प्यार माँ तेरी ममता का
बचपन की शरारते और फिर माँ का बचाव
यही तो रूप है माँ की ममता का........

पापा से गुस्सा होना, एक पल में मान जाना,
छोटी-२, बेंतो पे पापा को देना ताना,
मैं कुछ इंतज़ाम करुँगी, ये कहके विश्वास दिलाना,
ना रहे बच्चे भूखे-आज ये तथ्य हमने जाना,
ना कर पाए कदर, माँ तेरी ममता का
बचपन की शरारते और फिर माँ का बचाव
यही तो रूप है माँ की ममता का........

सीधी सच्ची सरल स्वभाव की
ऐसी औरत थी अपने गाव की-