Friday 9 September 2016

विचार प्रवाह

चालबाज होने से हमारी सम्पूर्ण कोशिश रहती है कि कैसे दूसरों को पटखनी दें, अर्थात हमारे भीतर द्वेष प्रबल रूप से उफान लेने लगता है। यह प्रक्रिया इतनी गुपचुप तरीके से हमें घेर रही होती है कि इसका पता लगना आसान नहीं होता। हम बिखरने लग जाते हैं, हम कम होने लग जाते हैं और सामान्य सी शांति जो सहज उपलब्ध है वो भी हमसे छिन जाती है। इस चक्र से बाहर निकलने का एक ही मार्ग है वो है सबसे प्रेम व प्रीति पूर्वक व्यव्हार करना, कठिन है साधना पथ पर सूक्ष्म साधना की अवस्था इसकी प्राप्ति सुगम बना देती है। इस एक उपाय में सारे उप-उपाय समाहित हैं। चालबाज नहीं हम प्रेम,प्रीति का आगाज़ बनें।

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क्या कोई कभी पूर्ण सत्य बोलने का साहस कर सकता है? पूर्ण सत्य से मेरा आशय है-सबकुछ जो भी अशुभ किया है और आगे से शुभ ही करेगा इस भावना से उघाड़ा गया सत्य!
पूर्ण सत्य:-अपनी प्रतिष्ठा, मान, सम्मान, उपाधि से विरत होकर वाणी को मुक्तहस्त बोलने देना, खोलने देना वो दबे राज जो खुद से भी अनजाने से रहे हैं अबतक!
कोई ऐसा कर ले,तभी पूर्ण निर्भार हो कर सत्य में प्रतिष्ठित हो सकता है, नहीं तो उसका व्यक्तित्व खंड खंड होकर उसे टुकड़ों टुकड़ों में तोड़ देगा!
में कभी कर पाउँगा ऐसा साहस? कठिन है पर मेरे हृदय की तीव्र अभीप्सा है..
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