Sunday 14 August 2016

नब्बू "एक गुजरा अनुभव(बासी)!

अदम्य साहसी, संकल्प से लबालब
स्वयं में निमग्न, "नब्बू" रहता था तब!
गुलाटी मारता, वह कहीं टिकता था कब?
समझ का पर्याय, आनंद का सबब!
इतने विशेषणों के बाद और क्या कह दूँ
हाँ! कुछ ऐसा ही था नब्बू!
ऊँचे पेड़ों पर चढ़, टीवी के सिग्नल्स पकड़ता
लिये गाय को चराने, जंगल को चल पड़ता
ऊँचे टीले के मस्तक पर टाँगे फैलाये,
खुद से सुलझता, और खुद से झगड़ता
भरी भीड़ में होता खुद से रूबरू
हाँ! कुछ ऐसा ही था नब्बू!
अँधेरी रातों में सफ़र करता था
डर के "डर" को बेअसर करता था
मैंने महसूस की हैं उसकी "बेख़ौफ़ सांसे",
जब अपने पे आता था, ग़दर करता था
भावों को शब्दों से कैसे शक्ल दूँ
हाँ! कुछ ऐसा ही था नब्बू!!

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