Sunday 14 August 2016

स्वतंत्रता का मूल!

स्वतंत्रता का मूल! फाँसी के फंदो पर झूमते, झूलते कन्धे
आतताइयों की गोली के शिकार "आज़ाद" परिन्दे
दबे, कुचले गए माँ भारती के समर्थन में स्वर
या- दूर भारत की सीमा से पार, वो हुंकार प्रखर
जिसकी प्रतिध्वनि आज रही है फल-फ़ूल
हाँ! यही तो है स्वतंत्रता का मूल!!
कितने नाम लूँ! कि कहीं बेईमानी न हो
उनके भाव अमर हों! भले ही मेरी वानी न हो
उनका हर वो स्वर, जिसने वंदे मातरम् गाया हो
आकाश में "शब्द" बनकर, पुरे देश में मंडराया हो
बन "शब्द-बाण" फिर जो बन गया घातक शूल
हाँ! यही तो है स्वतंत्रता का मूल!
स्वतंत्रता समर के कई ओर-छोर रहे होंगे
गुलामी के बादल भी कितने घनघोर रहे होंगे
फिर क्रांति-टोला बनकर सूरज निकला होगा
धधका होगा स्वयं तपकर, तब फिर मौसम उजला होगा
"स्वाधीन-रश्मि" ने कली खिलाई, ख़त्म हुआ अंग्रेजी रूल
हाँ! यही तो है स्वतंत्रता का मूल!
"खून और आज़ादी" का सम्बन्ध क्या होता है?
" स्वदेशी से स्वालंबी भारत" का सपना कौन संजोता है?
जब "मुट्ठीभर बंदूकें" बोई जाती हैं
"भूख-प्यास" में दिन तो रातें सोई जाती हैं
भूलें जितनी पहले की हैं, अब न करेंगे कोई भूल \
हाँ! हां! यही तो है स्वतंत्रता का मूल!

  वंदे मातरम्! वंदे मातरम्! वंदे मातरम्!

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