Monday 13 November 2017

लकार

#लकार_गण_धातुप्रकार_विभक्ति 
(1.) #संस्कृत_भाषा_में_तीन_लिंगः---(क) पुल्लिंग, (ख) स्त्रीलिंग, (ग) नपुंसकलिंग।
(2.)#तीन_वचनः---*
(क) एकवचन, (ख) द्विवचन, (ग) बहुवचन।
(3.) #तीन_पुरुषः--*(क) प्रथमपुरुष, (ख) मध्यमपुरुष, (ग) उत्तमपुरुष।
(4.)#छः_कारक_विभक्ति_और_चिह्नसहितः--
(क) कर्ताकारकः--ने (प्रथमा),
(ख) कर्मकारकः--को, (द्वितीया)
(ग) करणकारकः---से द्वारा, (तृतीया)
(घ) सम्प्रदानकारकः--के लिए, (चतुर्थी)
(ङ) अपादानकारकः---से अलग, (पञ्चमी),
(च) सम्बन्धः----का,के,की, (षष्ठी),
(छ) अधिकरणकारकः---में, पर, (सप्तमी),
(ज) सम्बोधनः--हे, हो ,अरे, (प्रथमा),
★(विशेषः----सम्बन्ध और सम्बोधन को कारक नहीं माना जाता।)
इस प्रकार कुल विभक्तियाँ सात हैं।
(5.)#लकारः---संस्कृत में कुल 10 लकार होते हैं। लिंग के दो भेद हैं---आशीर्लिंग और विधिलिंग। लेट् लकार का प्रयोग केवल वेद में होता है। इस प्रकार लोक में 10 लकार ही रहते हैं, जो इस प्रकार हैः--
(क) लट्,
(ख) लिट्,
(ग) लुट्,
(घ) लृट्,
(ङ) लेट्,
(च) लोट्,
(छ) लङ्,
(ज) लिंगः---आशीर्लिंग और विधिलिंग,
(झ) लुङ्,
(ञ) लृङ्
(6.)#गणः---10 गण होते है। इसके अतिरिक्त एक कण्ड्वादिगण भी है। जो इस प्रकार हैः--
(क) भ्वादिगण,
(ख) अदादिगण,
(ग) जुहोत्यादिगण,
(घ) दिवादिगण,
(ङ) स्वादिगण,
(च) तुदादिगण,
(छ) रुधादिगण,
(ज) तनादिगण,
(झ) क्रयादिगण,
(ञ) चुरादिगण,
(ट) कण्ड्वादिगण (अतिरिक्त)
(7.)#धातुएँ_दो_प्रकार_की_होती_हैं----(क) आत्मनेपदी (ख) परस्मैपदी। कुछ धातुएँ उभयपदी भी होती हैं।

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