Wednesday 18 April 2012

तू दिया हैं,मैं हूँ बाती

लिख प्रेम भरी दो पाती,
तू दिया हैं,मैं हूँ बाती
तेल संग हम लौ जलायें,
ये जिंदगी तो है आती-जाती.....
लिख प्रेम भरी दो पाती,
तू दिया हैं,मैं हूँ बाती..........................!!१!!
प्रेम की भाषा, प्रेम ही अक्षर
प्रेम ही तो है ये ईश्वर
है शाश्वत प्रेम जगत में
बाकी सब कुछ तो हैं नश्वर
जब बूँद सागर में समातीं
लिख प्रेम भरी दो पाती,
तू दिया हैं,मैं हूँ बाती..........................!!२!!
आ खुद के भीतर सूर्य उगायें
घोर ताम का अन्धकार मिटायें
बन प्रेम सुवास चहुँ दिशा में
आ वन-उपवन सब महकाएं
जब प्रेम बारिश खुद को नहलाती
लिख प्रेम भरी दो पाती,
तू दिया हैं,मैं हूँ बाती..........................!!३!!---आज प्रभात का लेखन (स्थान-राजापुरी

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