Wednesday, 26 August 2015

सुख का हक

पहले मैंने खुश रहने की कसमें खाई...
गूगल सर्च मारा,
101 तरीके भी अपनाएं..
फेंक स्माइल करते करते
मेरा मुहं थक गया...
वास्तव में खुश रहने के चक्कर में,
मैं बहक गया..
फिर मैंने अपनी जिंदगी बदली,
और फिर रास्ते
सबकुछ आसान सा फिर भी ना रहा
फिर भी बेमन मैं सहता रहा, कहता रहा..
कुछ और रास्ते
कुछ और रास्ते...
मैं वही रहा, रास्ते बदलते रहे...
मैं खो सा गया केवल रास्ते चलते रहे
मंजिल तो मुझे पानी थी,
और पहुँच रास्ते गए,
इस खोयेपन के बीच,
उदासी के बीच, मेरे अकेलेपन के दरमियाँ
मुझे एक विचार कौंधा, जैसे....
आता-जाता हवा का झरोखा
और कह गया रास्ता मत बदल,
राह कोई भी हो चलेगा, तू अपनी चाल बदल
तू अपनी सोच बदल,
तू जी ले हर सुख के क्षण को
तू सहेज कर रख हर उस कण को
जिसमें तू जिन्दा था,
दुःख में दुखी हो, कोई बात नहीं,
लेकिन सुख के क्षण को भी हक दे उसका,
लेकिन सुख के क्षण को भी हक दे उसका

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