राह चलते मुझे दिख जाते हैं,
कुछ लोग!!
वास्तव में उन्हें "लोग" कहना सही होगा
या नहीं, पर जो भी कहूँ वो सतही होगा
चलते चलते
"मैं" खो सा जाता हूँ
एक "अड़चन" मेरे बीच आ जाती हैं
मेरी उदासी, मुझे अकेली पाती हैं
और यह सोचकर,
कुछ देर मेरी सहचरी, मेरी साथी बन जाती है
विरोधाभास, मुझे पटकता है,
मेरी चलती हुई सांसों में अटकता है,
फिर एक पल,
में "सबकुछ" भूल जाता हूँ
क्यूंकि "बस" के इन्तेजार में,
जो मेरा चलना था, वो ठहर जाता है,
मैं घिर जाता हूँ
अपने ही संघर्ष में
सच कहूँ तो मैं "सबकुछ" भूल जाता हूँ...
कुछ लोग!!
वास्तव में उन्हें "लोग" कहना सही होगा
या नहीं, पर जो भी कहूँ वो सतही होगा
चलते चलते
"मैं" खो सा जाता हूँ
एक "अड़चन" मेरे बीच आ जाती हैं
मेरी उदासी, मुझे अकेली पाती हैं
और यह सोचकर,
कुछ देर मेरी सहचरी, मेरी साथी बन जाती है
विरोधाभास, मुझे पटकता है,
मेरी चलती हुई सांसों में अटकता है,
फिर एक पल,
में "सबकुछ" भूल जाता हूँ
क्यूंकि "बस" के इन्तेजार में,
जो मेरा चलना था, वो ठहर जाता है,
मैं घिर जाता हूँ
अपने ही संघर्ष में
सच कहूँ तो मैं "सबकुछ" भूल जाता हूँ...
राह चलते मुझे दिख जाते हैं,
कुछ लोग!!
जो मुझे बड़े सूकून में लगते हैं
फटेहाल, बेहाल, बदहाल
मुझे ऊपर से दिखते हैं
मेरी मुसीबत है, उनका यूँ
फटेहाल रहना,
उनका यूँ सूकून में रहना
कुछ लोग!!
जो मुझे बड़े सूकून में लगते हैं
फटेहाल, बेहाल, बदहाल
मुझे ऊपर से दिखते हैं
मेरी मुसीबत है, उनका यूँ
फटेहाल रहना,
उनका यूँ सूकून में रहना
में अपने साथी को कहता हूँ,
सुख जिसको नसीब नही हैं
शायद तभी ..
दुःख की झकल भी
नही पाते हैं
कुछ लोग!!
राह चलते मुझे दिख जाते हैं,
कुछ लोग!!
सुख जिसको नसीब नही हैं
शायद तभी ..
दुःख की झकल भी
नही पाते हैं
कुछ लोग!!
राह चलते मुझे दिख जाते हैं,
कुछ लोग!!
इतना मानते ही
मेरी हालत बद से बदतर हो जाती हैं
रात सोचते सोचते कभी सहर हो जाती है,
पर मेरा एक ही सवाल होता हैं
मैं उनकी आंतरिक ख़ुशी सहेजुं
या उनके बाह्य रूप को सवारूँ
मैं उनके लिए कुछ करूँ
या मैं मुँह फेर लूँ,
अपनी जिम्मेदारी से या..उनसें
जो
राह चलते मुझे दिख जाते हैं,
कुछ लोग!!
मेरी हालत बद से बदतर हो जाती हैं
रात सोचते सोचते कभी सहर हो जाती है,
पर मेरा एक ही सवाल होता हैं
मैं उनकी आंतरिक ख़ुशी सहेजुं
या उनके बाह्य रूप को सवारूँ
मैं उनके लिए कुछ करूँ
या मैं मुँह फेर लूँ,
अपनी जिम्मेदारी से या..उनसें
जो
राह चलते मुझे दिख जाते हैं,
कुछ लोग!!
४ दिन पहले, रामा कृष्णा आश्रम से राजेंद्र पैलेस पैदल चलते वक़्त मुझे और आज़ाद भाई को कई ऐसे "लोग" मिले जिनकी हालत फिजिकली बहुत ख़राब थी, मैंने इतने असहाय लोग पहली बार देखे थे, (शायद मैं पैदल कम चला हूँ, इसलिए), लेकिन उनके चेहरे पर मैंने एक गहरी शांति देखी, शांति के साथ उनका संतोष देखा, जिंदगी को पांव की ठोकर बनते देखा, उन्हें प्रेम में गाते हुए भी देखा, में बिस्मय में पढ़ा, मुझे दोहरी पीड़ा ने घेर लिया....एक पल के लिए मेरे दिल में उन असहाय लोगो के लिए करुणा और उनके जिंदगी के प्रति इतनी संजीदगी के लिए प्रेम...यही मेरा विरोधाभास बन गया और मेरे शब्दों ने इसी पीड़ा को व्यक्त करने का प्रयास किया हैं..
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