Wednesday, 12 August 2015

कुछ करना हैं, कुछ खास करना हैं!

कुछ करना हैं, कुछ खास करना हैं! 
बेहद, पराकाष्ठा, बेह्ताहाश करना हैं....
कुछ यूँ की, सुकूं मिल सके,
उस ऊंचाई का एहसास करना हैं!

सफ़र तो सबका कटता हैं, इस ज़माने में,
कौन नही मर रहा हैं "कुछ" कमाने में,
पर मैं उनमे से "वो" नहीं........
जिसे इंतज़ार हैं "समय" बीत जाने में....

एक सिद्दत से सब खो जाना हैं, 
कुछ पास में नही जो ले जाना हैं,
इस कदर खुद को "खाली" कर "नवीन"
जीवन में सब कुछ "भर" जाना हैं....

जो पूर्ण प्रेम का स्वामी हैं, 
निश्छल, निर्मम निष्कामी हैं,
चाल समय की वही बदलेगा...
जो समय संगामी हैं ....

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