शिक्षक दिवस पर: भाग- 2
फिर मैं कान्हा बन, मिटटी में खेलने लगा,
दूध भी चुराया, दोस्तों संग टहलने लगा,
फिर इसी बीच,
मेरी पड़ोस की भाभी, मेरी गुरु बन के आई,
उन्होंने, हम बच्चो की हर शाम कक्षा लगाई,
इस तरह सामजिक स्तर पर,
मुझे मिली मेरी पहली टीचर,
जिनके स्नेह, डांट और प्यार में,
मीठी सी मार और, फटकार में,
मैंने शिष्यत्व(सामजिक स्तर पर)
बचपन पाया
मैंने अपना गुरु पाया---भाभी (आंगनवाडी)
दूध भी चुराया, दोस्तों संग टहलने लगा,
फिर इसी बीच,
मेरी पड़ोस की भाभी, मेरी गुरु बन के आई,
उन्होंने, हम बच्चो की हर शाम कक्षा लगाई,
इस तरह सामजिक स्तर पर,
मुझे मिली मेरी पहली टीचर,
जिनके स्नेह, डांट और प्यार में,
मीठी सी मार और, फटकार में,
मैंने शिष्यत्व(सामजिक स्तर पर)
बचपन पाया
मैंने अपना गुरु पाया---भाभी (आंगनवाडी)
5 किलोमीटर दूर,
मैं मजबूर,
मुझे मेरा पहला विद्यालय मिला
कमरों में कैद मुझे, ज्ञान का मंदिर मिला,
मुझे शिशु मंदिर मिला
किताबों की दुनिया से मेरी पहचान हुई,
भारी बस्ते, से वर्षो फिर खींचातान हुई,
आचरण, नैतिकता, देश प्रेम से सराबोर
स्वयं में प्रफुल्लित, पुलकित
मैंने खुद में एक विद्यार्थी पाया
मैंने पहला आचार्यगण पाया---"आचार्य दिनेश पाण्डेय जी, आचार्य खीमानन्द जी एवं बहन जी)
मैं मजबूर,
मुझे मेरा पहला विद्यालय मिला
कमरों में कैद मुझे, ज्ञान का मंदिर मिला,
मुझे शिशु मंदिर मिला
किताबों की दुनिया से मेरी पहचान हुई,
भारी बस्ते, से वर्षो फिर खींचातान हुई,
आचरण, नैतिकता, देश प्रेम से सराबोर
स्वयं में प्रफुल्लित, पुलकित
मैंने खुद में एक विद्यार्थी पाया
मैंने पहला आचार्यगण पाया---"आचार्य दिनेश पाण्डेय जी, आचार्य खीमानन्द जी एवं बहन जी)
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