Friday, 9 September 2016

बचपन से लेकर आजतक!



बचपन से लेकर आजतक!
मैं क्या क्या न हुआ, मैंने क्या क्या मुकाम न छुआ
मैंने डर को "डराया", मैंने दर्द भी बांटा जो था पराया
बचपन की फुंहारे चूमती हैं मस्तक
बचपन से लेकर आजतक!!
एक भाव में जिया, मैं जलता, बुझता सा दिया
लिए घूमता फिरता रहा, कहता रहा कुछ अनकहा!
जो खुद मैं न समझा अब तलक!
बचपन से लेकर आजतक!!
पता नहीं मैं क्या चाहता था? न जाने मैं क्या नापता था?
अपने कदमो से किस ओर चला! ये भी कौन जाने भला?
राहगीर था जो राह गया था भटक!
बचपन से लेकर आजतक!!
भटकी राह में मिलता है, कोई जब पूण्य खिलता है
उंगली पकड़ पार लगाता है, कोई जब अश्रु धार बहाता है
फिर किस्मत पर नहीं रोता है साधक!
बचपन से लेकर आजतक!!

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