Wednesday, 2 September 2015

"रिश्ता"

"रिश्ता" जो ये शब्द है,
आपसी जुडाव है
बिन धागों का, 
बिन अटकलों का 
स्वतंत्र बहाव है 
इसमें भावों के सहारे
घर खड़े किये जाते हैं
प्रेम की सींचन से इसकी
जड़ें मजबूत किये जाते हैं
तब जाकर कहीं,
इसमें बहा जाता है
इसमें रहा जाता हैं
वाणी जिसमें मौन रह जाती हैं
शब्द जिसमें शोर बने जाते हैं,
एक छोटा सा सहारा "मैं हूँ ना"
जिसमें ध्येय वाक्य बन जाते हैं
"रिश्ता" जो ये शब्द है,
आपसी जुडाव है
बिन धागों का,
बिन अटकलों का
स्वतंत्र बहाव है

No comments:

Post a Comment