शिक्षक दिवस पर: भाग-1
मैं 3 रात्रि नही, पुरे नौ महीने साक्षात्
गुरु के
साक्षात् गर्भ में रहा
मेरे गुरु ने, मुझे अंधकार से बाहर निकालने
में हर वो दर्द सहा,
मेरी खुले आसमान में
उड़ने की चाहत
को पंख दिए
मुझे स्वयं का अंश बनाकर
स्वयं को दर्द दिए
फिर एक दिन....
21 फ़रवरी सन् 1989
मैंने खुला आसमान,
प्रकाश पाया
मैंने अपना पहला गुरु पाया--माँ
फिर मैं, एक उंगुली पकड़ कर चला
उस गुरु की,
जो थोड़े से सख्त, काफी भले थे,
मुझे जीवन पथ पर चलाने चले थे
अपने आचरण से मुझे,
सिखाने चले थे..."जीवन"
मैंने खुला रास्ता,
सहज प्रवाह पाया
मैंने अपना दूसरा गुरु पाया--पिताश्री
गुरु के
साक्षात् गर्भ में रहा
मेरे गुरु ने, मुझे अंधकार से बाहर निकालने
में हर वो दर्द सहा,
मेरी खुले आसमान में
उड़ने की चाहत
को पंख दिए
मुझे स्वयं का अंश बनाकर
स्वयं को दर्द दिए
फिर एक दिन....
21 फ़रवरी सन् 1989
मैंने खुला आसमान,
प्रकाश पाया
मैंने अपना पहला गुरु पाया--माँ
फिर मैं, एक उंगुली पकड़ कर चला
उस गुरु की,
जो थोड़े से सख्त, काफी भले थे,
मुझे जीवन पथ पर चलाने चले थे
अपने आचरण से मुझे,
सिखाने चले थे..."जीवन"
मैंने खुला रास्ता,
सहज प्रवाह पाया
मैंने अपना दूसरा गुरु पाया--पिताश्री
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