Saturday, 5 September 2015

शिक्षक दिवस पर: भाग- 3

शिक्षक दिवस पर: भाग- 3
फिर मेरे शिशु मंदिर के "नवीन भैया" से
सिर्फ "नवीन" बनने का सफ़र शुरू हो गया,
मेरे आचार्य भी अब "सर जी" हो गए, 
कुछ भी करो, अब तो "मन मर्जी" हो गए, 
मेरा बस्ता, 
धीरे धीरे दम तोड़ने लगा,
शिष्यत्व कम क्या हुआ, हम "फर्जी" हो गए
कुछ देर के लिए फिसल गए
देर से सही, लेकिन संभल गए,
मुझे कुछ "सर जी" में,
आचार्य दिखने लग गये
जिन्होंने हम सबको (श्याम, गौरव, प्रशांत)
12 वीं पास कराया
फिर मैंने जीवन पथ पर
पांव बढ़ाया
मैंने गुरु समूह पाया---(आ. शुक्लाजी, पाण्डेय जी, सिद्धकी सर, पीताम्बर सर, और आ. मदन सिंह जी "मास्साब")

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