Sunday, 22 April 2012

पहले मुर्गी या फिर अंडा



                                                        पहले मुर्गी या फिर अंडा







बालक: माँ! पहले मुर्गी या अंडा?
दुनिया में आने से पहले 
किसने गाड़ा झंडा ?।।१।।
माँ: बेटा टेढ़ा प्रश्न तुम्हारा,
कैसे तुम्हे बताऊँ,
जीव अंश इश्वर के सारे 
ये कैसे समझाऊं ।।२।।
टेढ़े मेंडे प्रश्न न पूछ तू ,
जा सोजा! करले निन्नी 
ऐसे प्रश्नों ने कर डाली  
बड़ो कि चक्कर घिन्नी ।।३।।
मुर्गी मरती अंडा बचता
अंडे से फिर मुर्गी ,
जीव कभी मरे नहीं मरता,
देह छोड़ हो जाती स्वर्गी ।।४।।
जैसे बट के  बीज समाये,
पेड़ हुआ जो भारी  
पेड़ परागढ़ करते वैसे                               
जैसे नर और नारी ।।५।।
मुर्गी अंडा बीज पौध का 
चोली दामन का नाता 
जीव उन्ही के बीच भटकता 
रहता आता जाता ।।६।।
निर्मल है आकाश के जैसा,
पानी हवा न आग जलाती 
इनके संग सदा रहता वह,
जीवन पर धरती मिल जाती ।।७।।
इश्वर का यह खेल निराला,
बेटा! जीवही कर्म नचावे 
जैसे जैसे कर्म करे वह
वैसे देहि पावे  ।।८।।
मुर्गी अंडा गाय भैंश में,
जीव देह से न्यारा 
कर्म भूमि में कर्म फलो के,
कारन जावे मारा ।।९।।
जीव देह का, देह कर्म का 
चोली दामन का नाता 
जीव उन्ही के बीच भटकता 
रहता आता जाता ।।१०।।
कर्मो के फल, जो तन मिलता 
विवश उसी में घुस जाता 
पेड़- पौंध क्या, पशु क्या पंछी 
क्या तू! क्या मैं, वह बन जाता।।११।।
फल -फूलों में, घास-पात में
अन्न-शाक, जल में मिल जाता
खाता जो-जो देहि उसको,
जान न कोई पाता।।१२।।
जन्मा मारा तो जीव देह से,
जीवन जाये मारा
देहि सदा सदा से हारी 
जीव कभी नहीं हारा ।।१३।।
धान कटे तो बीज बचाए 
बीज समय पा उग जाये 
वैसे जीव देह त्याग कर 
ह बीज रूप हो जाये ।।१४।।
बीज संभाले रखती धरती ,
 प्रकृति जगत कि महतारी 
मुर्गी देह बीज है अंडा, 
 ईश्वर के महिमा न्यारी ।।१५।।
जीव जगत का बड़ा अनोखा 
बेटा! ये विज्ञानी फंडा
सिर पर बैठा काल जीव के- 
दिन, गिन- गिन मारे डंडा
अब तू हि बता दे लाल! हुआ क्या ?
पहले मुर्गी या अंडा ।।१६।।
बालकोवाच:-
कुछ-कुछ समझ गया होइन अब मैं ,
जीव देह के भेदही माता!
सत कर्मो से हि मिलता है
अच्छे मात-पिता का नाता।।१७।।

मैं भी अच्छे काम करूँगा
भले -बुरे का, ज्ञान करूँगा!
मात-पिता-गुरु, सुहृद जनों का
"शैलज" आदर  मान करूँगा।।१८।।

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