Friday, 9 September 2016

गुरुवर तुम सहज-सरल हो!




कभी हम शिष्यों के बनते उत्तर
कभी हमें ही सुनते हो गुरु-प्रवर
पास बैठाकर कृपा बरसाते
बरसाते हो आनंद प्रखर!
तुम ध्यान की प्रथम पहल हो
गुरुवर तुम सहज-सरल हो!

बरबस ज्ञान की बदली बनकर
निर्भार बरसते निर्झर-निर्झर
कहीं फिर कोई बीज है उगता
वृक्ष बनकर वह छूता ध्यान-शिखर
खिलती कली सी, उगती कोपल हो
गुरुवर तुम सहज-सरल हो!
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
सत्कर्म, सहजता के तुम प्रवाह हो
ध्यान में स्थित वह शाश्वत ठहराव हो
कलकल-अविरल बहता जीवन
समस्त अशुभ का तुम अभाव हो
तुम शांत गहरे सागर के तल हो
गुरुवर तुम सहज-सरल हो!
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
गुरु-सखा या तात् कहूँ मैं
गुरु-शिष्य पावन संवाद कहूँ मैं
सजल नेत्र और उदार हृदय से
बस यही एक बात कहूँ मैं
आनंद बरसाते बादल हो
गुरुवर तुम सहज-सरल हो!



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