Sunday, 8 May 2016

माँ सृष्टि रचती है,


माँ सृष्टि रचती है,
अपने खून से, उसे सीचंती है,
मैंने सुना है वो,
एहसास करती है,
सृष्टि को गोद में भरती है,
अपनी ममता की फुहारों से पल-पल बरसती है
माँ सृष्टि रचती है,
अपने खून से,
उसे सीचंती है,
उस छोटी सी सृष्टि पर,
बिछ जाती है चादर बनकर
उसे अपने में समग्रता से लेकर लपेटती है
माँ सृष्टि रचती है,
अपने खून से,
उसे सीचंती है
ममता की सींचन से,
स्नेह की बिछोहन से
निरंतर उसके पालन में,
दिनरात लगी रहती है
माँ सृष्टि रचती है,
अपने खून से,
उसे सीचंती है
सृष्टि की उगती कोपलों पर
उनमें अपना प्रेम-रस भरकर
पशुओं से बचाकर, घेरबाड़ करती है
माँ सृष्टि रचती है,
अपने खून से,
उसे सीचंती है

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