#कर्म_कारक 【#Objective_Case】
१.सूत्र:- #कर्तुरीप्सिततमम्_कर्मः।
व्याख्या:- कर्ता की अत्यंत इच्छा जिस काम को करने में हो उसे कर्म कारक कहते हैं।
या, क्रिया का फल जिस पर पड़े, उसे कर्म कारक कहते हैं।
कर्म कारक का चिह्न "o, को" है।
यथा :- रमेश फल खाता है । रमेशः #फलम् खादति।
मोहन दूध पिता है । मोहनः #दुग्धं पिबति।
यहाँ फलम् और दुग्धं कर्म कारक है क्योंकि फल भी इसीपर पर रहा है और कर्ता की भी अत्यन्त इच्छा भी इसी काम को करने में है।
२.सूत्र:- #कर्मणि_द्वितीया।
व्याख्या :- कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है।
यथा:- गीता चन्द्रमा को देखती है। गीता #चंद्रम् पश्यति।
मदन चिट्ठी लिखता था । मदनः #पत्रं लिखति।
यहाँ चंद्रम् और पत्रं में द्वितीया विभक्ति है,क्योंकि ये दोनों कर्म कारक हैं।
३.सूत्र:-#क्रियाविशेषणे_द्वितीया।
व्याख्या:- क्रिया की विशेषता बताने वाले अर्थात् क्रियाविशेषण (Adverb) में द्वितिया विभक्ति होती है।
【क्रियाविशेषण- तीव्रम् , मन्दम् ,मधुरं आदि।】
यथा:- (क) बादल धीरे-धीरे गरजते है। मेघा: मन्दम्-मन्दम् गर्जन्ति। (ख) प्रकाश मधुर गाता है। प्रकाशः #मधुरं गायति।(ग)वह जल्दी जाता है। सः #शीघ्रं गच्छति।आदि
४.सूत्र:-#अभितः_परितः_सर्वतः_समया_निकषा_प्रति_संयोगेऽपि_द्वितिया।
व्याख्या :-उभयतः,अभितः(दोनों ओर), परितः (चारों ओर), सर्वतः (सभी ओर), समया( समीप), निकषा (निकट), प्रति (की ओर) के योग में द्वितिया विभक्ति होती है।
यथा:-(क) गाँव के दोनों ओर पर्वत हैं। #ग्रामं अभितः पर्वताः सन्ति ।(ख) विद्यालय के चारों ओर नदी है। #विद्यालयम् परितः नदी अस्ति। (ग) घर के सब ओर वृक्ष हैं। #गृहम् सर्वतः वृक्षाः सन्ति। (घ) तुम्हारे घर के समीप मंदिर है। तव #गृहम् समया मन्दिरं अस्ति। (ङ) मंदिर की ओर चलो। #मन्दिरं प्रति गच्छ। आदि
५.सूत्र:- #कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे_द्वितिया।
व्याख्या :- कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में यदि क्रिया का अतिशय लगाव या व्याप्ति हो तो द्वितिया विभक्ति होती है।
यथा :- कोस भर नदी टेढ़ी है। #क्रोशम् कुटिला नदी ।
मैं महीने भर व्याकरण पढ़ा। अहम् #मासं व्याकरणं अपठम्।
६. सूत्र:- #विना_योगे_द्वितिया ।
व्याख्या:- "विना" के योग में द्वितिया विभक्ति होती है।
यथा :-(क) परिश्रम के बिना विद्या नहीं होती ।
#परिश्रमम् विना विद्या न भवति ।
(ख) धन के बिना लाभ नहीं होता।
#धनम् विना लाभं न भवति । आदि।
तरुणेश कुमार झा मैथिली
१.सूत्र:- #कर्तुरीप्सिततमम्_कर्मः।
व्याख्या:- कर्ता की अत्यंत इच्छा जिस काम को करने में हो उसे कर्म कारक कहते हैं।
या, क्रिया का फल जिस पर पड़े, उसे कर्म कारक कहते हैं।
कर्म कारक का चिह्न "o, को" है।
यथा :- रमेश फल खाता है । रमेशः #फलम् खादति।
मोहन दूध पिता है । मोहनः #दुग्धं पिबति।
यहाँ फलम् और दुग्धं कर्म कारक है क्योंकि फल भी इसीपर पर रहा है और कर्ता की भी अत्यन्त इच्छा भी इसी काम को करने में है।
२.सूत्र:- #कर्मणि_द्वितीया।
व्याख्या :- कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है।
यथा:- गीता चन्द्रमा को देखती है। गीता #चंद्रम् पश्यति।
मदन चिट्ठी लिखता था । मदनः #पत्रं लिखति।
यहाँ चंद्रम् और पत्रं में द्वितीया विभक्ति है,क्योंकि ये दोनों कर्म कारक हैं।
३.सूत्र:-#क्रियाविशेषणे_द्वितीया।
व्याख्या:- क्रिया की विशेषता बताने वाले अर्थात् क्रियाविशेषण (Adverb) में द्वितिया विभक्ति होती है।
【क्रियाविशेषण- तीव्रम् , मन्दम् ,मधुरं आदि।】
यथा:- (क) बादल धीरे-धीरे गरजते है। मेघा: मन्दम्-मन्दम् गर्जन्ति। (ख) प्रकाश मधुर गाता है। प्रकाशः #मधुरं गायति।(ग)वह जल्दी जाता है। सः #शीघ्रं गच्छति।आदि
४.सूत्र:-#अभितः_परितः_सर्वतः_समया_निकषा_प्रति_संयोगेऽपि_द्वितिया।
व्याख्या :-उभयतः,अभितः(दोनों ओर), परितः (चारों ओर), सर्वतः (सभी ओर), समया( समीप), निकषा (निकट), प्रति (की ओर) के योग में द्वितिया विभक्ति होती है।
यथा:-(क) गाँव के दोनों ओर पर्वत हैं। #ग्रामं अभितः पर्वताः सन्ति ।(ख) विद्यालय के चारों ओर नदी है। #विद्यालयम् परितः नदी अस्ति। (ग) घर के सब ओर वृक्ष हैं। #गृहम् सर्वतः वृक्षाः सन्ति। (घ) तुम्हारे घर के समीप मंदिर है। तव #गृहम् समया मन्दिरं अस्ति। (ङ) मंदिर की ओर चलो। #मन्दिरं प्रति गच्छ। आदि
५.सूत्र:- #कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे_द्वितिया।
व्याख्या :- कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में यदि क्रिया का अतिशय लगाव या व्याप्ति हो तो द्वितिया विभक्ति होती है।
यथा :- कोस भर नदी टेढ़ी है। #क्रोशम् कुटिला नदी ।
मैं महीने भर व्याकरण पढ़ा। अहम् #मासं व्याकरणं अपठम्।
६. सूत्र:- #विना_योगे_द्वितिया ।
व्याख्या:- "विना" के योग में द्वितिया विभक्ति होती है।
यथा :-(क) परिश्रम के बिना विद्या नहीं होती ।
#परिश्रमम् विना विद्या न भवति ।
(ख) धन के बिना लाभ नहीं होता।
#धनम् विना लाभं न भवति । आदि।
तरुणेश कुमार झा मैथिली